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भग्‍न चिकित्सा

  1. पादतल भग्‍न में - सर्पि से अभ्‍यंग
  2. हस्‍ततल भग्‍न में - आयतैल से परिषेक
  3. अंगुली भग्‍न में - सर्पि/धृत से परिषेक
  4. पर्शुकास्थ भग्‍न में - तैल पूर्ण द्रोणी में शयन
  5. कपाल भग्‍न में - १ सप्‍ताह तक घृतपान (सु. चि. ३/४६)
  6. ग्रीवा भग्‍न में - १ सप्‍ताह तक शयन (सु. चि. ३/३७)
  7. ग्रीवा सद्योव्रण में - अजासर्पि से परिषेक
  8. कपाटशयन में ५ कीलों का निर्देश किया गया है (सु. चि. ३/४७)
  9. कपाटशयन हमेशा श्रोणि, प्रष्‍ठवंश, वक्ष, अक्षक भग्‍न (सु. चि. ३/५०)