भग्न चिकित्सा
- पादतल भग्न में - सर्पि से अभ्यंग
- हस्ततल भग्न में - आयतैल से परिषेक
- अंगुली भग्न में - सर्पि/धृत से परिषेक
- पर्शुकास्थ भग्न में - तैल पूर्ण द्रोणी में शयन
- कपाल भग्न में - १ सप्ताह तक घृतपान (सु. चि. ३/४६)
- ग्रीवा भग्न में - १ सप्ताह तक शयन (सु. चि. ३/३७)
- ग्रीवा सद्योव्रण में - अजासर्पि से परिषेक
- कपाटशयन में ५ कीलों का निर्देश किया गया है (सु. चि. ३/४७)
- कपाटशयन हमेशा श्रोणि, प्रष्ठवंश, वक्ष, अक्षक भग्न (सु. चि. ३/५०)