
प्रमा : यथार्थ अनुभव प्रमा
प्रमाण : ‘‘प्रमीयते अनेन इति प्रमाणं।’’ जिसके द्वारा यथार्थ (सत्य) ज्ञान किया जाय वह प्रमाण है। यथार्थ अनुभव प्रमा के साधन को प्रमाण कहते हैं।
प्रमेय : यथार्थ ज्ञान के विषय को प्रमेय कहते हैं।
प्रमाता : ज्ञातव्य विषय का ज्ञाता प्रमाता कहलाता है।
अप्रमा : अयथार्थ अनुभव
प्रमाता को प्रमा के द्वारा प्रमेय का ज्ञान होता है।
प्रमाण संख्या -
1. चार्वाक - 1 (प्रत्यक्ष)
2. जैन, बौद्ध, वैशेषिक - 2 (प्रत्यक्ष + अनुमान)
3. सांख्य योग - 3 (P+A+ शब्द)
4. न्याय, आयुर्वेद - 4 (P+A+युक्ति, आप्तोदेश, सु = उपमान)
5. मीमांसा, प्रभाकर - 5 (P+A+Y+उपमान + अर्थापत्ति)
6. कुमारिलभÍ, वेदान्त - 6 (P+A+Y+U+A+अभाव)
7. पौराणिक - 8 (6 + एतिह्य + संभव)
8. तान्त्रिक - 9
दसवां प्रमाण ‘‘परिशेष’’ माना गया है।