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Important योनिव्यापद

अतिचरणा पवनोSतिव्यवायेन  शोफसुप्ति रूजस्त्रिया:

सुश्रुत: अतिचरणा तर्योबीजं न विन्दति।

प्राक्चरणा : मैथुनादतिबालायापृष्ठकटयूरवक्षणम्।

सुश्रुत: नहीं मानी।

अचरणा: योन्यामाधावनात् कण्डूं जाताकुर्वन्ति जन्तव:। या स्यादचरणा कण्ड्वा तथाSतिनरकांक्षिणी।।

सुश्रुत: मैथुनेSचरणा पूर्वे पुरूषादतििस्च्यते।

वाग्भट: विप्लुताख्यात् Sधवनात् संजात जन्तु: (अचरणा नहीं माना)

उपप्लुता: ‘‘गर्भिण्या: श्लेष्मलाभ्यासाच्छदि नि:श्वास निग्रहात्। पाण्डुसतोदंमास्त्रोवं श्वेतं सं्रवति वा कफम्।।’’

परिप्लुता: ‘‘पित्तलाया नृसंवासे क्षवयूद्गारधारणा।’’

पुत्रहनी स्थितं स्थितं हन्ति गर्भं पुत्रहनी रक्तसंक्षयात्।

उपप्लुता    -               गर्भिणी दोष

सूचीमुखी   -               मातृदोष

षण्डी        -               बीज दोष