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AIAPGET
13,Sep 2024
Kashyap Samhita
दिशानुसार ज्वर
आग्नेय: स्थात् सतत को वायत्यो हि द्वितीयक:
वैश्वदेव: तृतीय: स्यात् ऐशानस्तु चतुर्थक:।।
सतत् ज्वर
आग्नेय
आमाशय में
द्वितीयक ज्वर
वायत्व
उर में
तृतीयक ज्वर
वैश्वदेव
कण्ठ - वाणी में
चतुर्थक ज्वर
ऐशान
देवता - शिर में