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दिशानुसार ज्वर

आग्नेय: स्थात् सतत को वायत्यो हि द्वितीयक:

वैश्वदेव: तृतीय: स्यात् ऐशानस्तु चतुर्थक:।।

सतत् ज्वर आग्नेय आमाशय में
द्वितीयक ज्वर वायत्व उर में
तृतीयक ज्वर वैश्वदेव कण्ठ - वाणी में
चतुर्थक ज्वर ऐशान देवता - शिर में