लक्षण of फक्क रोग
1- बालक के स्फिक्, बाहु तथा जंघा शुष्क हो
2- उदर, सिर, मुख बडे हो जाते हैं
3- आंखे पीली हो, अङ्गहर्ष युक्त
*4- अस्थियों का पज्जर दिखना
*5 अध: काय म्लान दिखता हैं
*6- मूत्र एवं मल सदा निकलता रहता हैं।
v.imp *7- निचला भाग/अध काय निश्चेष्ट एवं हाथ व घुत्नों के बल चलता हैं।
8- मन्द चेष्टाएँ
v.imp **9- मन्द चेष्टाओं के कारण मक्खियाँ, कृमि एवं कीडे आदि उसे आक्रान्त करके शीघ्र मृत्यु कर देते हैं।
10- रोगों के रोम विशीर्ण, ह्दय तथा स्तब्ध होते हैं, नख बड़े एवं शरीर दुर्गधित
11- दूषित सिङ्घाणक मल
भेद:
1- क्षीरज फक्क श्लेष्मिक दुग्ध सेवन से "क्षीरयो बहुव्याधि: काश्यति्" - बालक अनेक व्याधि तथा कृश्ता से पीडित।
2- गर्भज: "गभिणीमातृक क्षित्रं स्तन्यं पिनिवर्तनात्" - जिनकी माता गर्भिणी होने से उसका दुग्ध शीघ्र समाप्त हो जाए।
"क्षीयते म्रियते वाSपि" - बालक की मृत्यु हो जाती हैं।
3- व्याधिजन्य - निज तथा आगन्तुज ज्वर आदि रोगों से अनाथ बालकों को क्लेश होकर उनका मासं, बल क्षीण हो जाता हैं।
Treatment of फक्क रोग-
1- फक्क रोगी को - कल्याणघृत
षटपलघृत से 7 दिन स्नेहन
अमृतघृत
2- 7 दिन पश्चात - त्रिवृत क्षीर से शोधन
3- ब्राहमी घृत को कोष्ठ शोधन पश्चात सेवन ( क्षुद्र को निषेध )
4- राजतैल , त्रिचक्र रथ प्रयोग