1- भृशं शिर: स्पन्दयति निमीलयति चक्षुषी - सिर को हिलाता हैं
- आँखे बंद कर लेता हैं
2- अलसक: - शिरो: न धारयति यो भिहाते जृम्भते मुहु:
अलसक में बालक थोडी देर भी सिर को धारण नहीं करता एवं शरीर का भेदन होता है। बार-बार जम्भाई लेता हैं।
3- कर्णवेदना - कर्णो स्पृशति हस्ताभ्यां शिरो भ्रमयते भृशम
- कानो की वेदना में बालक हाथो से कानो का स्पर्श करता हैं तथा सिर को बहुत हिलाता हैं।
4- कण्ठशोथ - "कण्डू श्वयथु: कण्ठे ज्वरा: शिरोरूज: ।"
5- मुखरोग - "पीतमुद्गिरति क्षीरं नासाश्वासी मुखामये"
पिए हुए दूध को उगल देता है तथा नासा से श्वास लेता हैं।
6- कण्ठवेदना: "पीतमुग्दिरति स्तन्यं निष्टम्भिश्लेष्मसेवनं"
गले की वेदना में बालक पीए हुए दूध को उगल देता तथा श्लेष्मवर्धक पदार्थो के सेवन से विष्टभ हो जाता हैं।
7- अलसक: "स्तनं पिबती तात्यर्थं ग्रथितं छदंयत्यपि"
बालक अधिक स्तनपान नहीं करता तथा ग्रथित वमन कर देता हैं।
8- पीनस: "मुहुर्मुखेनोच्छूसिति पीत्वा- पीत्वा स्तनं तु य"
जो बालक स्तनपान करता हुआ बार - बार मुख से श्वास लेता हैं।।
9- तृष्णा - "स्तनं पिबति चात्यर्थ न च तृषिति रोदिके"
अधिक स्तनपान करने पर भी तृप्त नही होता , रोता रहता हैं।
10- अलसक: - "स्तनं पिबति नात्यर्थ ग्रथितं छर्दयत्यपि"
शिशु अधिक स्तनपान नहीं करता तथा ग्रथित वमन कर देता हैं।
11- उदररोग - "स्तनं व्युदस्यते"
बालक स्तनपान करना छोड़ देता हैं।
12- मुख रोग: - "पीतमुग्दिरति क्षीर नासाश्वासी"
पीये हुए दूध को उगल देता हैं तथा नासा से श्वास लेता हैं।
13-आमदोष: - 'रमणाशनश्य्यादीन् धांत्री च द्वेष्टि नित्यश:'
बालक को खेल, भोजन तथा निद्रा एवं धात्री से निरंतर द्वेष रहता हैं।
14-मदात्यय: - 'मूर्च्छा प्रजागरच्छर्दि धात्रीद्वेषारतिभ्रमै:।'
मूर्च्छा, जागरण, वमन, धात्री, धात्रीद्वेष, अरति, भ्रम लक्षण मदात्यय रोग में मिलते हैं।
15-ज्वर - 'धात्रीमालीयतेडकस्मात् स्तननात्यभिनन्दति'
ज्वर में बालक सहसा धात्री से लिपट आता हैं तथा स्तन या दूध की इच्छा नही करता।