वाग्भट्ट ने सव्रण शुक्र को 'क्षत शुक्र' माना है। वह पित्तज माना है। (सुश्रुत – रक्तज)
- कष्टसाध्य
- पित्त दोष प्रथम पटल में – कष्टसाध्य
- द्वितीय पटल – याप्य
- तृतीय पटल – असाध्य
सुश्रुत – नीलांजन से चिकित्सा