1 अक्ष (कर्ष) मात्रा मे गुटिका बनाए
-> तर्पणी वृष्या रक्तपितं च नाश्येत् |
भैषज्यरत्नावलि – 'रक्तपित्त' रोगाधिकार
चरक - क्षत क्षीण